प्रथम संगम और कथा
ओंकार पर्वत की पूर्व दिशा में ओंकारेश्वर से एक मील पहले नर्मदा जी के साथ कावेरी नदी का प्रथम संगम हुआ है। जिस पवित्र स्थान पर कुबेर जी का मंदिर है। यह स्थान भौतिक जगत सृष्टिकर्ता ब्रम्हाजी का स्थान है।पहले इस स्थान पर ब्रम्हा जी का एक मंदिर था जिसमे ब्रम्हाजी की सुंदर काले पत्थर से निर्मित मूर्ति विराजमान थी। कुबेर जी ने इस स्थान पर तपस्या कर ब्रम्हाजी के वरदान से यक्षों के अधिपति पद प्राप्त किया था। एक समय रावण ने कुबेर को युद्ध मे हराकर नवनिधि के साथ उनका सारा धन भंडार छिन लिया था। सभी कुछ खो जाने के बाद कुबेर जी ने ओंकारेश्वर के इसी स्थान पर आकार कठोर तपस्या की । कुबेर जी की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रम्हाजी ने पुनः कुबेर जी को नवनिधि के साथ धनाधिपति व यक्षाधिपति का पद प्रदान किया।
संगम
इस स्थान से साथ बहकर लगभग 1 मील के बाद ओंकार पर्वत के उत्तर की और कावेरी और दक्षिण की और नर्मदा प्रथक होकर बहती है। एसा माना जाता है संगम से बहते बहते इन दोनों बहनों मे कुछ अनबन हो जाती है और ओंकार पर्वत से दोनों अलग अलग हो जाती है। और नर्मदा कावेरी संगम तक दोनों बहने एक दूसरे को मना फिर से साथ हो जाती है। जिसके कारण यह पर्वत ॐ आकार का द्वीप बनकर ॐ कार का रूप धारण कर लेता है । इसी पवित्र स्थान को नर्मदा कावेरी संगम कहा जाता है।
इस स्थान का बहुत महत्व है। मनोकामना पूर्ण करने के लिए यात्री इस स्थान पर पत्थरो के घरों का निर्माण करते है । इसके पीछे की किवदंती यह है कि आप जितनी मंजिला इमारत पत्थरो से एक के ऊपर एक रख कर बनाते है भविष्य में उतनी ही मंजिला इमारत प्राप्त होती है। इस स्थान पर एक प्राचीन शिव मंदिर भी है जिसकी परिक्रमा के दौरान पूजा अर्चना तथा परिक्रमा कर ओमकार परिक्रमा के लिए जल भरकर आगे की ओर प्रस्थान किया जाता है।